आचार्य गुरुवार विद्या सागर जी
ऐसे संत जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है| आपकी मुद्रा भीड़ में अकेला होने का बोध कराती है। अकंप पद्मासन शांत स्वरूप, अर्धमीलित नेत्र, दिगम्बर वेश, आध्यात्मिक परितृप्ति-युक्त जीवन और निःशब्द अनुशासन ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
जिस प्रकार से सूर्य की किरणों से जगत का अन्धकार मिट जाता है, ऐसे ही मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी सिद्धांतों में छुपे वैज्ञानिक तथ्यों को अपनी सरल वाणी से शंका समाधान, प्रवचनों और साहित्य से समस्त दुनिया के जीवों का मार्ग दर्शन करते हैं।
मुनि श्री निर्वेग सागर जी
मुनि श्री, आचार्य श्री के खजाने का एक नायाब अनमोल हीरा हैं। इस हीरे की चमक से एक तरफ सम्पूर्ण जिनागम प्रकाशित है, वहीं दूसरी ओर जन जन के जीवन में ज्ञान ध्यान का प्रकाश फैल रहा है। उनका गम्भीर ज्ञान और चर्या से सभी को अपनी ओर खींच लेते हैं।
मुनि श्री संधान सागर जी
मुनि श्री संधान सागर, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पद चिन्हों पर चलते हुए उन्हीं की तरह का चुम्बकीय व्यक्तित्व, सरलता, समता, शांति मूर्ति और दोनों की तरह बहुभाषाविद, कवि, कुशल काव्य शिल्पी, श्रेष्ठ चर्या पालक, कठोर साधक, चिन्तक, लेखक हैं।
मूकमाटी
गुरु वाणी
ईर्यापथ भक्ति
खादी का इतिहस
मुनि श्री के बारे मैं
मुनि संधान सागर जी
पूज्य मुनि संधान सागर जी महाराज के शरीर को देखकर कोई इस बात को कह नही सकता कि महाराज किसी तरह की शारीरिक मेहनत भी कर सकते हैं लेकिन आपको यकीन नही होगा कि वे दिन भर में जितना लेखन कार्य करते हैं उतना दो लोग मिलकर भी नही करते होंगे, जितना वो चलते हैं उतना दो लोग मिलकर भी नही चलते होंगे,, यानि वो दो सामान्य मनुष्य से भी अधिक कार्य करते हैं| बोलने से तो ऐसा लगता हैं जैसे कोई सामान्य सी बात हैं मगर जब उसे क्रिया रूप परिणित करने की बात आती हैं तो शायद लाखों में एक निकलेंगे इस क्रिया को करने वाले, प्रतिमायोग जी हां किसी प्रतिमा की तरह लगातार कुछ देर नही कुछ घंटे नही बल्कि पूरे दो दिन तक बैठने वाले मुनि श्री संधान सागर जी महाराज के लिये यह एक सहज क्रिया हो गयी हैं और यह सब सम्भव हुआ हैं एक श्रेष्ठ साधक के शिष्य होने से|
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प्रश्न
मुनि श्री के बारे मैं कुछ प्रश्न
मुनि श्री का जन्म दिनांक एवं तिथि 25-09-1976, शनिवार आश्विन शुक्ल 2 (भाद्र शुक्ल) वि.सं. 2033
मुनि दीक्षा दिनांक 31-07-2015 शुक्रवार द्वितीय आषाड शुक्ल 15 (गुरुपूर्णिमा) वि.सं. 2072. श्री 1008 दिगंबर जैन अतिशय बीना बारहा तह.-देवरी जिला-सागर (म.प्र.)दीक्षा गुरु :- आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के संघस्त रहेते हुये कई क्र्तियों का संपादन, ध्यान शिविर, विधान आदि प्रभावक कार्य किये है फिर सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर में रहे इसके पूर्व में भाग्योदय तीर्थ में भी सेवा के कार्य किये हैं | (केशलोंच का नियम 2006 सिलवानी से, एक बार भोजन का नियम 2002 नेमावर वर्षायोग से लिया, ग्रह का त्याग 16-11-2001 से आजीवन नमक, मिटा का त्याग किया )
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